Bhavishy Darshan
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Favourable Gems/राशि रत्न


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Tantrik Pendant/ तांत्रिक लाकेट

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Rashiphal / राशिफल

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दीक्षान्त समारोह फोटो

 
मंत्र व स्तोक्त
      स्तोक्त किसी देवता की स्तुति या प्रार्थना होती है। जो किसी भी प्रकार के शब्दों में सम्भव है। अर्थात स्तोक्त में निहित शब्दों को बदल भी देते हैं तो कोई विशेष अन्तर नही आता है। परन्तु मंत्र में निहित शब्दों को बदलना तो दूर, उसके अनुस्वार आदि में भी अन्तर नहीं किया जा सकता। यही नहीं अपितु उसमें समान धर्म या अर्थ बोधक शब्द का भी बदल कर प्रयोग नहीं किया जा सकता जैसें
                आदि पूज्यं, गणाध्यक्षं, उमापुत्रं विनायकं।
                मंगल, परमरुप, श्री गणेशं नामाम्यहम्।।
      आदिपूज्यं गणाध्यक्ष, उमापुत्रं विनायकं, मंगल परमरुपं, श्री गणेशं प्रणमाम्यहम् नमाम्यहम् व प्रणमाम्यहम् का एक ही अर्थ है परन्तु मंत्र में ऐसा करना भी वर्जित है। जैसे रेडियो की फ्रीक्वैन्सी बदल जाती है।
     मंत्र का स्वरुपः- क्या मंत्र सशरीर है? या निराकार है या मंत्र का स्वरुप क्या है। वस्तुतः मंत्र सशरीर हो नहीं सकता क्योंकि शरीर वाले प्राणियों में मलिनता का विद्यमान होना अवश्यम्भावी होता है। मंत्रों में दूषिता सम्भव नहीं होती है। इसलिये मंत्र मूलतः निराकर होते है। परन्तु फिर भी सामर्थवान एवं सवेग होते है। अपने सामर्थ के कारण ही वे साधक को भोग व मोक्ष देने में समर्थ है। अपने वेग के कारण ही वे साधक एवं साध्य क बीच सफल माध्यम का कार्य करते है। मानो साधक इंद्र के लिये मंत्र उच्चारण करता है, मंत्र की ध्वनि आकाश तत्व में मिलकर इन्द्र तक पहुंच जाती है। इस ध्वनि के साथ होता है। साधक की गंध, भावनाएं, इच्छाएं, साधक का ज्ञान व व्यक्तित्व। जब ये ध्वनियों इन्द्र से टकरा कर लौटती है तो उनमें इन्द्र का सामर्थ, ऐश्वर्य, दृढ़ता व आशीर्वाद होता है जो जातक के शरीर से टकराकर उसमें इन्द्र का व्यक्तित्व उत्पन्न करता है। तेजस्वी, सामर्थवान व ऐश्वर्यवान बनाता है।
      इस प्रकार मंत्र अशरीर होते हुए भी साधक व देवता के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में समर्थ है।

      1. मन्त्र क्या है? वह कैसे प्रभावित करता है? अनिष्ट फल को कैसे दूर करता है?
      2. मंत्र कार्य कैसे करता है?
      3. मंत्र व स्तोत
      4. मन्त्र - सामर्थ
      5. अंतश्चेतन को जाग्रत करने के लिये
      6. साधन किस मास में आरम्भ की जाये?
      7. जप का विशेष महत्व है। जप की कुछ सावधानियाँ
      8. जप तीन प्रकार का होता है
      9. माला संस्कार
      10. माला फेरते हुए कुछ सावधनियाँ
      11. पुष्प- शास्त्रों में पूजन के लिये पुष्प का विशेष महत्व
      12. पुरश्चरण
      13. यज्ञ/हवन


Pooja/Tantra           पूजा / तंत्र

    आपकी वर्तमान एंव भविष्य की परेशानियों एंव कष्टों को दूर करने हेतु मंत्र तंत्र, अनुष्ठान एंव यज्ञ का प्रावधान है जिससे शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एंव शिक्षा आदि परेशानियों को दूर किया जा सकता है।

विवाह तंत्र घट विवाह अनुष्ठान अनुकूल रत्न
 
Our Products           हमारे उत्पाद

    सिद्ध यंत्र, सिद्ध लाकेट, सिद्ध रुद्राक्ष एंव सिद्ध मालायें धारण करने एंव मंत्रों के जाप से पति-पत्नि बशीकरण, मुकदद्मा जीतने, शिक्षा एंव नौकरी की रूकावटों, शारीरिक, मानसिक परेशानी दूर की जा सकती है।

सिद्ध पूजा यंत्र सिद्ध-रुद्राक्ष मालायें सिद्ध लाकेट
Education              शिक्षा

    हम अपनी ज्योतिष, तंत्र शिक्षा प्रसार समिति द्वारा ज्योतिषशास्त्र, वास्तुशास्त्र एवं अंकविज्ञान आदि की शिक्षा प्रदान करते है। यह संस्था अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ, नई दिल्ली से सम्बद्ध (affilated) है।

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    आपको ज्योतिष एंव वास्तु का ज्ञान प्रदान करके जीवन की उन्नति हेतु हम द्वि-मासिक "भविष्य निर्णय" पत्रिका, भविष्य दर्शन पंचांग कालदर्शक (कलेण्डर) एवं लघु पाकेट पंचांग का प्रकाशन करते हैं।

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